दोस्तो हम सभी को अपने जीवन में कुछ बनने का, कुछ पाने का, कुछ करने का, कहीं जाने का या कुछ चीजों को अपने पास रखने का सपना होता है| हम सभी जानते है कि अपने इन सपनों को सच करने के लिए हमें कुछ निश्चित कार्यो को करना होता हैं| हम उन सभी कार्यो को समय पर करने की कोशिश करते है| लेकिन अक्सर वह समय पर पूरी नहीं हो पाती है अर्थात कार्य में बांधा आती है और देरी या कार्य टल जाती है और हमारे सपने सपने रह जाते है।
कभी–कभी इनके टल जाने का कारण पता होता है और कभी–कभी नहीं पता होता है लेकिन हमें इनके टलने का बहुत पछतावा होता है जो इसका समाधान नहीं है। तो बात ऐ आती है कि कार्य के टलने का क्या समाधान करें, जो हमारे सपनों को पूरा होने से रोकती है | और कभी–कभी पछतावा अधिक होने के कारण दुःख भी देते है।
- कार्य में रूचि की कमी
- कार्य का कठिन या लम्बा होना
- आवश्यक जानकारी की कमी होना
- समय का व्यवस्थित न होना
- अपर्याप्त संशाधन
- पारिवारिक व्यावधान
- बाहरी आकर्षण
- विमार होना
कार्य में रूचि की कमी
संसार में सभी लोग वही करना चाहते है जो उन्हे करना पसन्द होता है और उनके मनपसन्द कार्य को करने का अवसर यदि मिल गया तो उसे लम्बे समय कर सकते है क्योकिं रूचि हमेशा कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है।
यहां पर मैं कुछ पुरानी कार्यो को याद दिलाना चाहुगां की जब हम बच्चे थे तो खेलने के लिए कभी किसी की आज्ञा का इन्तजार नहीं करते है, और तबतक खेलते है जबतक हमारे माता–पिता खेलना बन्द करने के लिए नहीं कहते। यह रूचि की शक्ति और कार्य का आकर्षण ही है जो कार्य से आता है और उसे टलने नहीं देता बल्कि उसके होने में स्थायित्व लाता है। इसीलिए सभी मोटीवेशनल स्पीकर्स अपने पैसन को फालो करने का सलाह देते है। (Follow your passion)
अगर हम स्वतंत्र दिमाग से इनके कारणो को जानने की कोशिश करे तो हम कुछ निश्चित कारणो को पाते है जो इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है जो यहाँ पर उल्लेखित है-
जिम्मेदार कारण
इसके विपरीत यदि कार्य रूचिकर नहीं है ऐसी परिस्थति में जब इस प्रकार के कार्य को करते है तो आप उस कार्य के परिणाम के दबाव में होते है, न की कार्य के। जबतक कार्य का फल याद रहता है तबतक तो आप कार्य को करते है और जब कार्य का फल भुल जाता है तो हमारा मन उसे नजरअन्दाज करने लगता है।
अतः हमे हमेशा याद रखना चाहिए की हमे कार्य करना होता है और कार्य पूर्ण होने के पश्चात परिणाम स्वतः ही आता है। इसीलिए रूचि हमेशा काम में होना चाहिए। ताकि कभी वांछित परिणाम से कम परिणाम आने पर भी हम कार्यविमुख न हो।
यह अथक सत्य है कि कोई व्यक्ति बाहरी आकर्षण के दबाव में स्वतः लम्बे समय तक नही बना रह सकता। यह कार्य के होने वाले स्थायित्व में सबसे बड़ी बाधा है। ऐसी परिस्थिति में कार्य के टलने या पोस्टपोनिगं से बचने के लिए अपने कार्य में रूचि पैदा होना अतिआवश्यक है और इसके लिए अपने कार्य में कुछ रूचिकर जोड़ सकते है कुछ नयापन के साथ कार्य करने के तरिके को बदल सकते है या आपके कार्य में जो पसन्द ना हो या जो आपको जो डिमोटिवेट करता हो उसे दुसरे के माध्यम से पूरा करवा सकते है।
यदि एक लाईन में कहे तो ʺआप अपने कार्य को रूचिकर बनायेंʺ
कार्य का कठीन व लम्बा होना
यह एक मानवीय गुण है कि सभी आसान और साधारण कार्य करना पसन्द करते है जो आसानी और जल्दी से पूरा हो जाय, इसके विपरीत जब कुछ कठीन व लम्बा कार्य करने को मिल जाता है तो एसी स्थिति में हमारा मन कोई दुसरा व आसान तरीके के खोज में लग जाता है
और न पाने की स्थिति में उसे मोबाईल, लैपटाप, गेम, फिल्म, बहसबाजी आदि विभिन्न कार्यो के माध्यम से नजरअन्दाज करना शूरू कर देता है। जिससे हमारा लक्ष्य हमसे दूर होना शुरू हो जाता है। अन्ततः हम इतना लम्बा धैर्य नही रख पाते और इसी के साथ – साथ दुसरा कार्य भी करने लगते है और व्यस्त होने के कारण जो हमारा लक्ष्य व प्राथमिक कार्य टल जाता है। यह भी एक मुख्य कारण है।
जैसा कि हमे पता चल गया है कि कार्य का कठिन होना भी एक मुख्य कारण है जो वास्तविक रूप में कुछ नहीं है। यदि आपने सुना होगा तो आपको याद होगा की संदीप महेश्वरी जी कहते है कि ʺआसान हैʺ।
वास्तव में कुछ आसान व कुछ कठिन नही होता, जिसे हम करना जानते है और हमारी रूचि होती है वो आसान व छोटा होता है। जिसे हम करना नहीं जानते है जिसमें हमारी रूचि नहीं होती है वह कठिन व लम्बा होता है। जैसे स्कूल की कोई एक सेसन एक घण्टे से अधिक हो तो लम्बा लगता है लेकिन तीन घण्टे की फिल्म हम एक बार में देख लेते है वो लम्बा नहीं लगता है।
अतः यह स्पष्ट है कि यह सब फिलीगं का कमाल है और इस तरह के फिलीगं के लिए-
कुछ टिप्स यहां पर है–
१- यदि कार्य लम्बा लगता है तो उसे छोटे–छोटे भाग में तोड़ लिजिए, और एक–एक भाग तो पूर्ण करिये। जब आप एक भाग को पूर्ण कर लेगें तो आपको अपने आप में अच्छा महसुस होगा, जो आपको शेष को भी पूरा करने के लिए प्रेरित करेगा।
अन्ततः आप एक बड़ा कार्य आसानी से पूर्ण कर लेगें। यहां एक उदाहरण है – जब एक व्यक्ति लोन लेता है तो यदि वह पूरे लोन की धनराशि को चुकाने के बारे में सोचें तो घबरा जायेगा, लेकिन बजाय इसके यदि वह एक किस्त को चुकाने पर फोकस करे तो एक–एक करके बड़ी से बड़ी धनराशि को भी आसानी से चुका देता है।
२- कभी–कभी कार्य को करने की जानकारी न होने के कारण भी कार्य कठीन लगता है, ऐसी स्थिति में हमें और अधिक सीखने की आवश्यकता होती है ।
३- जब आप अपने किसी कार्य को करते है तो उसी से चिपके से चिपके रहिए, उसके चुनौतीयों के बारे में, उसके समाधान (उसके होने वाले अप्रत्यक्ष फायदे, किसी आसान तरिको के बारे में, कौन से भाग को दुसरे को सौंपना है) के बारे में फोकस करिए।
किसी दुसरे के रूचिकर कार्य के बारे में मत सोचें, ऐसा करने से आपका अपने कार्य में रूचि बढ़ने लगेगा और कठिन होने की फिलिगं समाप्त हो जायेगी।
आवश्यक जानकारी की कमीः
कभी–कभी हम कुछ करने के बारे में सोचतें है और हम पूरे आत्मविश्वास से भरे होते है लेकिन हमे यह पूर्ण रूप से स्पष्ट आईडिया नही होता कि उसे करना कैसे है, उसे करने का तरीका स्पष्ट रूप से नही दिखता, और कभी–कभी इसके कारण से भी हम कार्य को प्रारम्भ करना नजरअन्दाज करते है
सबसे आश्चर्य की बात ये होती है कि हमारा मन इस कमजोरी को स्वीकार भी नही करता है। यह ऐसे ही है जैसे एक व्यक्ति जिसे किसी निश्चित स्थान पर जाना है लेकिन उसे स्पष्ट रूप से यह जानकारी नहीं है कि जाये कैसे, और वह गन्तब्य स्थान तक पहॅुचने में बहुत लम्बा समय लगा देता है, बजाय इसके यदि उसे स्पष्ट रूप से रास्ते का जानकारी हो तो वह बहुत जल्दी पहॅुच जाता है।
यहां पर यह स्पष्ट हो गया कि आवश्यक जानकारी की कमी भी कार्य टलने (Postpone) का एक कारण है इसिलिए हमे अपने कार्य के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए।
इसके लिए हम पढ़नें, अनुभवी व्यक्ति से सलाह लेना, इण्टरनेट पर सर्च करना या अन्य किसी माध्यम से जानकारी प्राप्त कर सकते है।
समय का व्यवस्थित न होना
हमें हमारे सामान्य जीवन में बहुत से कार्य करने को होते है, और सभी महत्वपूर्ण होते है, एसे स्थिति में हम किसी भी कार्य को नजरअन्दाज नहीं कर सकते और ऐसे मौके पर हमे कार्य की प्रधानता (समय, परिणाम और लागत आदि को ध्यान में रखकर) तय करनी होनी होती है,
हम किसी कार्य को किसी दुसरे सम्बन्धित व्यक्ति के माध्यम से पूर्ण कर सकते है। इसके लिए हमे समय प्रबन्धन की अच्छी जानकारी की आवश्यकता होती है।
अपर्याप्त संशाधन
जब हम किसी कार्य को करते है तो कोशिश करते है कि कम से कम लागत में वह पूर्ण हो जाये, यह एक मानवीय गुण है। सभी अपने धन की बचत करना चाहते है, जिसका ही एक परिणाम है अपर्याप्त संशाधन का होना, जो हमारे कार्य को और अधिक चुनौतीपूर्ण व लम्बा बनाता है।
कुछ मामलों में धनराशि सीधे संशाधन के रूप में कार्य करता है। प्राकृतिक रूप से सभी व्यक्ति चुनौतीपूर्ण कार्य के बजाय आसान कार्य को करना पसन्द करते है और जब उनका सामना चुनौतीपूर्ण कार्य से होता है तो वह उसे स्किप या नजरअन्दाज करने की कोशिश करते है। इसलिए पर्याप्त संशाधन रखिए जो आपके कार्य को आसान बनाते है ओर टलने (Postpone) नही होने देते।
पारिवारिक व्यवधान
जैसा आप सभी ने अनुभव किया होगा, कि जब हम घर पर होते है तो करने को बहुत से कार्य होते है, और हम उसे करते भी है। यदि आप अपने कार्य मे व्यस्त है और उसी समय किसी अन्य सदस्य के द्वारा किसी अन्य कार्य को करने के लिए कहा जाता है और उसे आप पूरा करने के लिए चले जाते है तो अपने कार्य से विचलित हो जाते है और आपका अपना कार्य बाकि रह जाता है।
कुछ मामलों में, यदि परिवार का कोई अन्य सदस्य अपना कार्य करता है तो उनका कार्य आपके कार्य में बांधा पैदा करता है या आपका कार्य परिवारिक कार्य में बांधा पैदा करता है और वे आपको अपने कार्य को बाद में करने के लिए कहते है। इस प्रकार ऐ परिवारिक बाधाएं आती है।
इसके लिए भी हमें कार्य की प्रधानता तय करनी होती है, कार्य को किसी और के माध्यम से पूर्ण करवा सकते है, किसी दुसरे स्थान का चयन कर सकते है या सम्बन्धित व्यक्ति से अपने कार्य के महत्वपूर्णता के बारे में शेयर कर कुछ समझौता कर सकते है। लेकिन किसी से किसी प्रकार की गुस्सा करने या किसी से जबरदस्ती करने की कोशिश ना करें क्योंकि ये आपके रिस्ते को खराब कर देते है।
अन्य (बाहरी) चीजों का आकर्षण
स्वयं पर नियन्त्रण एक बहुत महत्वपूर्ण चीज है, आपने बहुत सी मोटिवेशन स्पीच को सुना होगा जिसमे कहा जाता है कि यदि आप स्वयं पर नियन्त्रण कर पाते है तो आप कुछ भी कर सकते है बजाय इसके यदि बाहरी आकर्षण आपको नियन्त्रित करता है तो आप स्वयं से कुछ नहीं कर सकते एसी स्थिति मे बाहरी आकर्षण आपको संचालित करते है।
बड़ी कठीन स्थिति तब हो जाती है जब हमे यह महसुस भी नहीं होता की हम बाहरी आकर्षण द्वारा संचालित हो रहे है। हमें सिर्फ यह महसुस होता है कि हम सारी चीजें स्वयं से कर रहे है|
यहां पर एक उदाहरण है
आप कल्पना करिये की आप अपने कार्य को पूरा करने जा रहे है और किसी ने आपसे क्रिकेट खेलने को कहा और आप क्रिकेट खेलने चले गये, तो आप सोचोगें की आप अपने आप से क्रिकेट खेलने गये हो।
लेकिन आप अपना काम पूरा करना चाहते थे इसीलिए उसे पूरा करने जा रहे थे। तो आपको को किसने संचालित किया? कोई आपसे क्रिकेट खेलने के लिए पूछे या ना पूछे, लेकिन आप खेलने नही गये होते तो आप का कार्य पूरा होता। और किसी के द्वारा क्रिकेट खेलने के लिए या किसी भी कार्य के पूछना आपके नियन्त्रण मे नहीं है, आपके नियन्त्रण में केवल जाना या ना जाना ही है।
यहां पर एक और उदाहरण है
आप कल्पना करिये की आप अपना कार्य कर रहे है और आपके समुदाय में कुछ हो रहा है, और आप देखने गये की क्या हो रहा है और आप देखते रह गये, दुसरी तरफ आपका कार्य पूरा नहीं हो पाया और समय बीत गया।
आप सोचेगें की आप स्वयं से देखते रह गये लेकिन आप तो अपना कार्य पूरा करना चाहते थे तभी तो पूरा कर रहे थे, तो आपको किसने संचालित किया? अगर आप समुदाय में हो रही चीजों को देखना जारी नहीं रखते तो आपका कार्य पूरा होता। और समुदाय में कुछ होना हमारे नियन्त्रण में नहीं है लेकिन देखना या ना देखना हमारे नियन्त्रण में है।
यहां पर यह स्पष्ट हो गया है कि क्रिकेट खेलना और देखते रहना बाहरी आकर्षण के कारण हुआ है। और इसका मतलब आप बाहरी आकर्षण के द्वारा संचालित हुए हो। इस प्रकार अनगिनत स्केपिगं थिगं हमारे आस–पास उपस्थित होते है जैसे– मोबाइल, लैपटॉप, टी०वी०, बहसबाजी इत्यादी। यह भी कार्य टलने या पोस्टपोनिगं का एक मुख्य कारण है। ऐसी स्थिति में हमे ध्यान रखना चाहिए, क्या महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है और जब महत्वपूर्ण एवं आवश्यक चीजें स्पष्ट हो जाती है तो आप स्वयं नियन्त्रित एवं स्वयं से संचालित होने लगते है।
बिमारी
स्वास्थ्य के बारे में तो आपने बहुत कुछ पढ़ा व सुना होगा जैसे–
Wealth is lost, nothing is lost. Health is lost, something is lost.
स्वस्थ होना वह चीज है जो किसी भी कार्य को करने के लिए सहायक परिस्थितियां पैदा करता है, जब आप स्वस्थ होते है तो आप सभी चीजों को करना आनन्दमय महसुस करेगें अन्यथा खेलना भी आनन्दमय नहीं लगता है।
एसी स्थिति में यह सम्भव नहीं है कि आप कुछ कार्य कर सकें। इसीलिए बिमार होना भी कार्य के टलने व पोस्टपोनिगं का एक कारण है। यह बहुत ही साधारण बात है और सभी जानते है कि जब हम स्वस्थ नहीं होते तो हमारा बॉडी किसी कार्य को करने की अनुमति नहीं देती, इसीलिए स्वस्थ रहिए अपना कार्य पूरा करिए और ʺआगे जाओʺ(आगें बढ़े)।
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